रूस-यूक्रेन युद्ध अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है और अब यह संघर्ष केवल सैन्य मोर्चे तक सीमित नहीं रह गया है। जहां अमेरिका और चीन रणनीतिक चुप्पी साधे हुए हैं, वहीं ब्रिटेन खुलकर रूस के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाए हुए है। हाल ही में ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय ने दावा किया है कि इस युद्ध में 2.5 लाख रूसी सैनिक मारे जा चुके हैं, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी भी संघर्ष में रूस की सबसे बड़ी क्षति है। ब्रिटेन का कहना है कि रूसी सेना की क्षमताएं कमजोर हो रही हैं, जिसके चलते रूस अब शांति वार्ता की दिशा में सोच रहा है।
ट्रंप का विवादित सुझाव और ज़ेलेंस्की का इनकार
इस बीच, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन को सुरक्षा देने के लिए एक नया सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका को यूक्रेन के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर नियंत्रण कर लेना चाहिए और वहां से यूक्रेन को ऊर्जा और सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। हालांकि, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने इस प्रस्ताव को पूरी तरह से खारिज कर दिया। ज़ेलेंस्की ने स्पष्ट कहा, "ये संयंत्र यूक्रेन की संपत्ति हैं। हमारे पास 15 परमाणु संयंत्र हैं और उन पर किसी अन्य देश का अधिकार नहीं हो सकता।"
यूक्रेन की शांति वार्ता की शर्तें
तीन वर्षों से चल रहे युद्ध के बाद यूक्रेन ने संकेत दिया है कि वह शांति वार्ता के लिए तैयार हो सकता है। लेकिन शर्त यह है कि रूस को पहले अपने कब्जे वाले इलाकों को खाली करना होगा। विशेष रूप से ज़ापोरिज़िया परमाणु संयंत्र, जिस पर युद्ध की शुरुआत में रूसी सेना ने कब्जा कर लिया था, अब वार्ता की प्रमुख शर्तों में से एक है। ज़ेलेंस्की ने कहा कि अगर अमेरिका इस संयंत्र को रूस से मुक्त कराने में मदद करता है, तो यह एक अहम कदम हो सकता है।
ब्रिटेन की आक्रामक रणनीति
जहां अमेरिका और चीन संतुलन साधने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं ब्रिटेन रूस को सीधी चुनौती देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि यूक्रेनी सेना ने रूस को इतना नुकसान पहुंचाया है कि पुतिन अब वार्ता की मेज पर आने को मजबूर हो सकते हैं। ब्रिटेन के अनुसार अब तक 9 लाख रूसी सैनिक हताहत हुए हैं, जिनमें से 2.5 लाख की मौत हो चुकी है। हालांकि, रूस ने इन आंकड़ों को दुष्प्रचार बताया है और ब्रिटेन की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।
चीन और अमेरिका का तटस्थ रुख
चीन खुद को मध्यस्थ के रूप में पेश कर रहा है और रूस व यूक्रेन के बीच वार्ता कराने की कोशिश में लगा है। दूसरी तरफ अमेरिका, ट्रंप के सुझावों के बावजूद, युद्ध में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने से बच रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका और चीन किसी भी प्रकार के सीधे टकराव से बचना चाहते हैं।
क्या रूस कमजोर हो रहा है?
ब्रिटेन के मुताबिक, रूस की सेना और अर्थव्यवस्था दोनों पर दबाव बढ़ रहा है। पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने रूस की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है और नए सैनिकों की भर्ती भी कठिन हो गई है। हालांकि, रूस की आधिकारिक स्थिति अब भी यही है कि वह यूक्रेन में अपनी सैन्य कार्रवाई जारी रखेगा।
ब्रिटेन की दिलचस्पी पर उठे सवाल
विशेषज्ञ यह सवाल उठा रहे हैं कि ब्रिटेन इस युद्ध में इतनी आक्रामकता क्यों दिखा रहा है? अमेरिका, जो अधिक प्रत्यक्ष रूप से शामिल रहा है, अब तक ऐसे आक्रामक बयान देने से बचता रहा है। क्या ब्रिटेन की यह नीति रूस को किसी बड़े संघर्ष में धकेलने की रणनीति का हिस्सा है या यह पश्चिमी देशों की समन्वित योजना है?
निष्कर्ष: वैश्विक राजनीति का नया अध्याय?
यह स्पष्ट होता जा रहा है कि पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने की रणनीति अपना रहे हैं। अगर रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता शुरू होती है, तो यह युद्ध समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ब्रिटेन युद्ध को और गहराएगा या सिर्फ बयानबाजी तक सीमित रहेगा?