मुंबई, 01 जुलाई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। बेंगलुरु में IPL जीत के जश्न के दौरान आरसीबी की विक्ट्री परेड में मची भगदड़ के मामले में निलंबित किए गए आईपीएस अधिकारी विकास कुमार को सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल ने मंगलवार को बहाल कर दिया। ट्रिब्यूनल ने साफ कहा कि इस हादसे के लिए पुलिस नहीं बल्कि आरसीबी फ्रेंचाइजी जिम्मेदार है, जिसने बिना पुलिस की पूर्व अनुमति के सोशल मीडिया पर अचानक आयोजन की घोषणा कर दी, जिससे भारी भीड़ इकट्ठा हो गई।
ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस न तो भगवान है और न कोई जादूगर, यदि समय रहते पुलिस को जानकारी और तैयारी का अवसर नहीं दिया जाए तो उससे भीड़ को नियंत्रित करने की उम्मीद करना अनुचित है। CAT ने इस बात को प्रमुखता से उठाया कि आरसीबी ने 4 जून को होने वाली विक्ट्री परेड की सूचना पुलिस को पहले नहीं दी थी और भीड़ नियंत्रण के लिए पर्याप्त वक्त नहीं छोड़ा गया था। अचानक सूचना और आयोजक की लापरवाही के कारण 5 लाख से ज्यादा की भीड़ उमड़ पड़ी थी, जिससे भगदड़ की स्थिति बनी और 11 लोगों की जान चली गई थी, जबकि 75 से अधिक लोग घायल हो गए थे। इस हादसे के बाद राज्य सरकार ने आईपीएस अधिकारी विकास कुमार समेत तीन अधिकारियों को निलंबित किया था और अन्य पुलिस अधिकारियों पर भी कार्रवाई की गई थी। सरकार ने दावा किया था कि आरसीबी के सीईओ ने 3 जून को बेंगलुरु पुलिस आयुक्त को आयोजन की सूचना दी थी, लेकिन इतने बड़े कार्यक्रम के लिए तैयारी का समय नहीं था, इसलिए आयोजन की अनुमति नहीं दी गई थी।
विकास कुमार ने सरकार के निलंबन आदेश को 5 जून को ट्रिब्यूनल में चुनौती दी थी। इस मामले की सुनवाई CAT की बेंगलुरु बेंच में हुई, जिसमें न्यायिक सदस्य जस्टिस बीके श्रीवास्तव और प्रशासनिक सदस्य संतोष मेहरा ने 24 जून को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। मंगलवार को आए फैसले में ट्रिब्यूनल ने कहा कि निलंबन का आदेश ठोस सबूतों पर आधारित नहीं है और इस आदेश को निरस्त किया जाता है। राज्य के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने कहा है कि वे ट्रिब्यूनल के आदेश की समीक्षा करेंगे और आगे की कानूनी प्रक्रिया के लिए मुख्यमंत्री से सलाह लेंगे। गौरतलब है कि सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) सरकारी कर्मचारियों से जुड़े सेवा विवादों को सुलझाने के लिए बनाया गया एक विशेष मंच है, जिससे न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ कम किया जा सके। इसके फैसलों को चुनौती सीधे हाईकोर्ट में दी जा सकती है और देशभर में इसकी कई बेंचें कार्यरत हैं।