प्रयागराज न्यूज डेस्क: पूरे विश्व में केवल प्रयागराज ही ऐसा स्थान है, जहां कल्पवास की अनूठी परंपरा निभाई जाती है। माघ मेले के दौरान गंगा-यमुना के पवित्र संगम तट पर नियम, संयम और साधना के साथ एक माह तक निवास करने को कल्पवास कहा जाता है। इस वर्ष पौष शुक्ल एकादशी यानी 30 दिसंबर से कल्पवासियों का मेला क्षेत्र में आगमन शुरू हो जाएगा, जबकि पौष शुक्ल पूर्णिमा 3 जनवरी से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का विधिवत कल्पवास आरंभ होगा, जो माघ पूर्णिमा एक फरवरी तक चलेगा।
देश के कई राज्यों और उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से लाखों श्रद्धालु पहले ही संगम क्षेत्र में अपने ठहरने की व्यवस्था सुनिश्चित करा चुके हैं। दंडी बाड़ा, आचार्य बाड़ा, तीर्थ पुरोहितों, खाक चौक और विभिन्न धार्मिक संस्थाओं के शिविरों में स्थान आरक्षित किए गए हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पहले पौष शुक्ल एकादशी से माघ शुक्ल एकादशी तक कल्पवास का विधान था, लेकिन अब पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक की परंपरा अधिक प्रचलित है। इतिहास में वर्ष 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा संगम तट पर एक माह तक कल्पवास किया जाना भी उल्लेखनीय है।
शास्त्रों में कल्पवास के कठोर नियमों का विशेष महत्व बताया गया है। पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने इसके 21 विधि-विधान बताए हैं, जिनमें सत्य, अहिंसा, इंद्रिय संयम, ब्रह्मचर्य, मौन, जप-तप, सत्संग, गंगा स्नान, एक समय भोजन और निरंतर ईश्वर स्मरण जैसे नियम शामिल हैं। कल्पवासी को अपने संकल्पित क्षेत्र में ही रहने और साधु-संतों की सेवा करने का भी निर्देश है।
धार्मिक संस्थाओं से जुड़े संत-महात्माओं के अनुसार, नए वर्ष की शुरुआत से पहले ही संगम तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगेगी। अखिल भारतीय दंडी संन्यासी परिषद, आचार्य बाड़ा और अन्य संगठनों के शिविरों में हजारों कल्पवासियों के आने का अनुमान है। संतों का कहना है कि माघ मेले में कल्पवास की यह परंपरा भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक जीवन की जीवंत पहचान है।