मुंबई, 21 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात की रहने वाली 28 हफ्ते की प्रेग्नेंट रेप विक्टिम को अबॉर्शन की इजाजत दे दी। महिला ने पहले हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने बिना कारण बताए 17 अगस्त को उसकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद पीड़ित 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट पहुंची। उसी दिन गुजरात हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए एक ऑर्डर जारी किया। जिसमें लिखा कि उन्होंने पीड़ित पक्ष की याचिका खारिज करते हुए उनसे पूछा था कि क्या वह बच्चे को जन्म देकर उसे स्टेट को सौंपना चाहती हैं। गुजरात हाईकोर्ट का यह ऑर्डर देख सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना काफी नाराज हुईं। उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के किसी आदेश के जवाब में हाईकोर्ट से कुछ ऑर्डर आता है, इसे हम सही नहीं मानते। गुजरात हाईकोर्ट में यह क्या हो रहा है।
आज सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, भारतीय समाज में शादी के बाद प्रेग्नेंट होना कपल और उनके परिवार के लिए खुशियां लाता है, लेकिन इसके उलट बिना शादी की प्रेग्नेंसी काफी पीड़ादायक होती है। खासतौर से जब रेप के मामलों में ऐसा होता है तो यह विक्टिम के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, एक महिला का दुष्कर्म होना, अपने आप में कष्टदायक है। इसके बाद अगर वह प्रेग्नेंट हो जाए तो यह पुराने घावों की याद दिलाता रहता है। ऐसे में हम मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार, विक्टिम को अबॉर्शन की इजाजत देते हैं। कोर्ट पीड़ित को मंगलवार को अस्पताल जाने की निर्देश देती है, ताकि अबॉर्शन की प्रोसेस को पूरा किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अबॉर्शन के बाद यदि भ्रूण जीवित पाया जाता है तो अस्पताल को भ्रूण के जीवित रहने को सुनिश्चित करने के लिए सभी सुविधाएं देनी होंगी। बच्चे को कानून के अनुसार गोद देने के लिए सरकार कानून के मुताबिक कदम उठाए।