मुंबई, 11 अक्टूबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट में 26 हफ्ते की प्रेग्नेंट शादीशुदा महिला के अबॉर्शन केस में दोनों जजों की राय अलग रही। जस्टिस हिमा कोहली प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के पक्ष में नहीं थीं, लेकिन जस्टिस बीवी नागरत्ना उनसे सहमत नहीं थीं। दोनों जजों के बीच असहमति को देखते हुए मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया है। इससे पहले कोर्ट ने नई मेडिकल रिपोर्ट को लेकर नाराजगी जाहिर की। बेंच ने कहा कि अब इस रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि 26 हफ्ते के भ्रूण के जीवित रहने की काफी संभावना है। उन्होंने पूछा कि अगर डॉक्टर पिछली रिपोर्ट के सिर्फ दो दिन बाद ही इतने स्पष्ट तरीके यह बात रख सकते हैं तो पिछली रिपोर्ट विस्तृत और साफ क्यों नहीं थी। इस रिपोर्ट को देखकर कौन सा कोर्ट कहेगा कि भ्रूण की धड़कन रोक देनी चाहिए।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों सुनवाई में 27 साल की महिला को अनचाहे गर्भ को अबॉर्ट करने की अनुमति दी थी। महिला ने कोर्ट को बताया था कि वह दो बच्चों की मां है और डिप्रेशन से जूझ रही है। उसने अपने मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक पहलुओं का हवाला देते हुए कहा कि वह तीसरा बच्चा पालने की स्थिति में नहीं है। जिसके बाद कोर्ट ने महिला को 10 अक्टूबर को AIIMS के गायनेकोलॉजी डिपार्टमेंट में जाने को कहा था और AIIMS के डॉक्टरों को निर्देश दिया था कि महिला का चेकअप करके जल्द से जल्द उसकी प्रेग्नेंसी टर्मिनेट कर दी जाए, लेकिन डॉक्टरों ने रिपोर्ट में जानकारी दी कि भ्रूण के जीवित रहने की संभावना है, जिसके बाद कोर्ट ने इस आदेश को वापस ले लिया।