मुंबई, 05 मार्च, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। केंद्रीय जांच एजेंसी ने बोफोर्स घोटाले का दावा करने वाले माइकल हर्शमैन से जुड़ी जानकारी अमेरिका से मांगी है। हर्शमैन 2017 में भारत दौरे पर आए थे। उन्होंने दावा किया था कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने घोटाले की जांच को पटरी से उतार दिया था। तब हर्शमैन ने CBI के साथ बोफोर्स मामले से जुड़ी अहम जानकारी शेयर करने की इच्छा जाहिर की थी। दरअसल, बोफोर्स घोटाला साल 1986 का है, तब राजीव गांधी की सरकार थी। आरोप था कि स्वीडिश कंपनी AB बोफोर्स ने सौदे के लिए भारतीय नेताओं और रक्षा मंत्रालय को 60 करोड़ रुपए की घूस दी थी।
फेयरफैक्स ग्रुप के चीफ हर्शमैन ने 2017 में कई इंटरव्यू में दावा किया था कि 1986 में भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने विदेशों में भारतीयों से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करने का जिम्मा उन्हें सौंपा था। इसमें कुछ बोफोर्स सौदे से संबंधित थे। CBI ने 8 साल पहले ही हर्शमैन के उन दावों से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करना शुरू कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत सरकार ने उन्हें जांच करने की जिम्मेदारी दी है। हर्शमैन की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज या उनकी तरफ से सबमिट की गई किसी रिपोर्ट की डिटेल जब वित्त मंत्रालय से मांगी गई तो जांच एजेंसी को रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराए गए। पिछले कई सालों से जांच कर रही CBI ने इंटरपोल से भी संपर्क किया। कई बार अनुरोध किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। 8 नवंबर, 2023, 21 दिसंबर, 2023, 13 मई, 2024 और 14 अगस्त, 2024 को अमेरिकी अधिकारियों को लेटर भेजा, जानकारी नहीं मिली। इंटरपोल और अमेरिकी अधिकारियों को भेजे लेटर के बाद जब कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। आखिर में सीबीआई को लेटर रोगेटरी (LR) अमेरिका को भेजना पड़ा। इस साल 14 जनवरी को गृह मंत्रालय से लेटर रोगेटरी (LR) को अमेरिका भेजने के लिए सीबीआई को हरी झंडी मिल गई। सीबीआई कोर्ट ने 11 फरवरी कोLR आवेदन को मंजूरी दे दी। लेटर रोगेटरी (LR) एक देश की अदालत द्वारा किसी आपराधिक मामले की जांच या केस में मदद के लिए दूसरे देश के कोर्ट को भेजा गया लिखित अनुरोध है। LR जारी करने के लिए CBI के आवेदन को मंजूरी देते हुए एक विशेष अदालत ने कहा, यह अनुरोध किया जाता है कि माइकल हर्शमैन के इंटरव्यू में किए गए दावों से संबंधित तथ्य का पता लगाना जरूरी है। इसके लिए दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य दोनों चाहिए। ऐसे में अमेरिका में जांच करना आवश्यक है।
आपको बता दें, CBI ने बोफोर्स को लेकर 1990 में केस दर्ज किया था। दरअसल 1989 में एक स्वीडिश रेडियो चैनल ने आरोप लगाया था कि बोफोर्स द्वारा सौदे को हासिल करने के लिए भारत के राजनेताओं और रक्षा अधिकारियों को रिश्वत दी गई थी। CBI ने 1999 और 2000 में आरोप पत्र दायर किए। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2004 में राजीव गांधी को दोषमुक्त कर दिया था। 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट ने बाकी बचे हुए आरोपियों के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि CBI आरोप साबित नहीं कर पाई। 2005 के कोर्ट के फैसले के खिलाफ CBI ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन देरी के आधार पर इसे खारिज कर दिया गया था।