भारत के सर्वोच्च न्यायालय में आज एक असामान्य दृश्य देखने को मिला। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी, जिनका कार्यकाल 9 जून 2025 को समाप्त हो रहा है, आज अपने आखिरी कार्यदिवस पर औपचारिक रूप से विदा लीं, लेकिन इस मौके पर कोई फेयरवेल कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया।
इस अभूतपूर्व घटना ने सुप्रीम कोर्ट की वर्षों पुरानी परंपरा को तोड़ दिया, जिस पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह ने खुलकर असहमति जताई।
क्या है सुप्रीम कोर्ट की फेयरवेल परंपरा?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में जब कोई जज रिटायर होता है, तो दो स्तरों पर फेयरवेल होता है:
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सेरेमोनियल बेंच – चीफ जस्टिस की कोर्ट में एक विशेष सत्र आयोजित होता है, जिसमें रिटायर हो रहे जज को CJI के साथ बैठाया जाता है। सीनियर वकील और अटॉर्नी जनरल उनकी सराहना करते हैं।
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सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा फेयरवेल – एक औपचारिक कार्यक्रम जिसमें वकील समुदाय, अन्य जज और जज के परिवारजन शामिल होते हैं। इसमें अनुभव, भावनाएं, और कृतज्ञता साझा की जाती है।
लेकिन जस्टिस बेला त्रिवेदी के लिए यह दूसरा हिस्सा पूरी तरह नदारद रहा।
सेरेमोनियल बेंच में CJI और साथी जजों की नाराजगी
जस्टिस त्रिवेदी के लिए सेरेमोनियल बेंच की परंपरा निभाई गई। CJI जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह उनके साथ बैठे।
CJI गवई ने कहा:
"जस्टिस त्रिवेदी ने हमेशा साहस, स्पष्टता और निष्पक्षता के साथ फैसले दिए। बार एसोसिएशन का फेयरवेल न देना गलत परंपरा की शुरुआत है।"
जस्टिस मसीह ने भी कहा कि:
"जजों के साथ स्नेह और सम्मान का भाव संस्थागत संस्कृति का हिस्सा होना चाहिए।"
जब यह बात कही जा रही थी, तब SCBA के प्रेसिडेंट कपिल सिब्बल और वाइस प्रेसिडेंट रचना श्रीवास्तव कोर्ट में मौजूद थे, लेकिन वे चुपचाप बैठे रहे।
CBA ने क्यों नहीं दिया फेयरवेल?
इस परंपरा के टूटने के पीछे कुछ विवादित कारण बताए जा रहे हैं:
1. जस्टिस त्रिवेदी का अनुशासनप्रिय व्यवहार
2. फर्जी केस पर सख्त कार्रवाई
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एक बार एक फर्जी केस दाखिल होने पर वकीलों ने मामला दबाने की कोशिश की।
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जस्टिस त्रिवेदी ने SCBA की सिफारिश को ठुकराते हुए CBI जांच का आदेश दिया।
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यह कदम कई वकीलों को पसंद नहीं आया और नाराजगी का कारण बना।
टूटी वर्षों पुरानी परंपरा, उठे सवाल
फेयरवेल न दिए जाने से सुप्रीम कोर्ट की एक गरिमामयी परंपरा टूटी। इससे यह सवाल खड़े हो गए हैं:
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क्या व्यक्तिगत नाराजगी संस्थागत सम्मान से ऊपर हो सकती है?
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अगर आने वाले समय में और जजों को इसी तरह नजरअंदाज किया गया तो क्या यह परंपरा समाप्त हो जाएगी?
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क्या सुप्रीम कोर्ट के भीतर एक प्रकार का असंतोष और खेमेबंदी शुरू हो रही है?
कौन हैं जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी?
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जन्म: 10 जून 1960, पाटन, गुजरात
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शुरुआत: 1995 में ट्रायल कोर्ट जज के रूप में
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पद: गुजरात हाई कोर्ट, राजस्थान हाई कोर्ट, और फिर सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति: 31 अगस्त 2021
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ऐतिहासिक निर्णय: 2022 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को 10% आरक्षण देने के फैसले में बहुमत का हिस्सा
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प्रसिद्धि: निर्भीक, अनुशासनप्रिय और निष्पक्ष न्यायाधीश के रूप में पहचानी जाती हैं
निष्कर्ष: क्या फेयरवेल देना सम्मान का विषय नहीं रहा?
जस्टिस बेला त्रिवेदी के लिए फेयरवेल न आयोजित करना सिर्फ एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि संस्थागत परंपरा को तोड़ने का संकेत है। CJI की नाराजगी बताती है कि यह केवल एक व्यक्ति विशेष की बात नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक सिस्टम की मर्यादा का प्रश्न है।
"संस्थान व्यक्तिगत भावनाओं से नहीं, परंपराओं और गरिमा से चलता है।"