हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के बयान से एक नया राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। महबूबा ने इस फैसले को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ करार देते हुए सरकार की नीति पर सवाल उठाए, जिसके बाद वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के निशाने पर आ गईं।
BJP नेताओं ने इस बयान को पाकिस्तान समर्थक और देशविरोधी सोच का परिचायक बताया है। खास तौर पर जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ से विधायक शगुन परिहार ने महबूबा मुफ्ती पर तीखा हमला बोला है।
"महबूबा पाकिस्तान की भाषा बोल रही हैं" — BJP विधायक शगुन परिहार
BJP विधायक शगुन परिहार ने ANI से बातचीत में महबूबा मुफ्ती की आलोचना करते हुए कहा,
“जब देश संकट की घड़ी में है, हमारे बैसरन में 26 निर्दोष नागरिक मारे गए हैं, उस समय भी महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान की भाषा बोल रही हैं। खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।”
उन्होंने कहा कि देशविरोधी घटनाओं पर भारत को सख्त रुख अपनाना चाहिए, और सिंधु जल संधि को निलंबित करना एक सही कदम है। पाकिस्तान वर्षों से आतंकवाद को समर्थन देता रहा है, ऐसे में उसे जल आपूर्ति जारी रखना राष्ट्रहित में नहीं है।
महबूबा मुफ्ती के बयान पर उठे गंभीर सवाल
महबूबा मुफ्ती ने सिंधु जल समझौते को निलंबित करने के फैसले को “राजनीतिक” करार देते हुए कहा कि इससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ेगा। उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत को इस तरह की कार्रवाइयों से बचना चाहिए क्योंकि इससे “शांति की संभावनाएं खत्म होती हैं”।
लेकिन बीजेपी नेताओं का कहना है कि जब सीमा पर हमारे जवान और नागरिक मारे जा रहे हैं, तब पाकिस्तान के साथ "शांति" की बातें करना जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।
“देश की जनता ने महबूबा को नकार दिया” — BJP का पलटवार
शगुन परिहार ने आगे कहा कि महबूबा मुफ्ती का रुख शुरू से ही पाकिस्तान के पक्ष में रहा है।
“उन्हें जम्मू-कश्मीर की जनता ने विधानसभा चुनाव में नकार दिया। उनकी पार्टी पीडीपी को महज 3 सीटें मिलीं और महबूबा खुद अपनी सीट भी हार गईं।”
उन्होंने यह भी कहा कि जब देश एकजुट होकर खड़ा है, तब महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं को राष्ट्रहित के साथ खड़ा होना चाहिए न कि दुश्मन देश के समर्थन में बयानबाज़ी करनी चाहिए।
सिंधु जल संधि क्या है और क्यों हुआ निलंबन?
सिंधु जल संधि वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक जल बंटवारे की ऐतिहासिक संधि थी, जिसे वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में लागू किया गया था। इसके तहत भारत ने 3 पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी) का अधिकार अपने पास रखा और पाकिस्तान को 3 पश्चिमी नदियों (सिंधु, चिनाब, झेलम) का जल उपयोग करने की इजाजत दी गई।
लेकिन पुलवामा, उरी जैसे हमलों, सीमा पर गोलाबारी और अब बैसरन में नागरिकों की हत्या के बाद भारत में इस संधि को लेकर नाराजगी बढ़ती गई। ऐसे में केंद्र सरकार ने अब इस समझौते को निलंबित करने का निर्णय लिया है।
"पाकिस्तान को एक बूंद पानी भी न दी जाए" — BJP की मांग
BJP नेता शगुन परिहार ने कहा,
“हम प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के इस ऐतिहासिक फैसले के साथ पूरी तरह खड़े हैं। अब समय आ गया है कि पाकिस्तान को एक बूंद पानी भी न दी जाए।”
उन्होंने कहा कि अब पाकिस्तान को आतंकवाद के समर्थन की कीमत चुकानी होगी। जल जैसे जीवनदायिनी संसाधन को अब भारत को अपने राष्ट्रीय हितों में उपयोग करना चाहिए।
निष्कर्ष: बयानबाज़ी या देशहित का मुद्दा?
महबूबा मुफ्ती का बयान एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम मानवता के सवाल को सामने लाता है। एक ओर केंद्र सरकार और BJP का कहना है कि पाकिस्तान जैसे राष्ट्र के साथ सख्ती से निपटना जरूरी है, वहीं महबूबा मुफ्ती जैसे नेता इसे शांति प्रक्रिया पर हमला बता रहे हैं।
लेकिन सवाल यह है — क्या देश की सुरक्षा से बढ़कर कोई राजनीति हो सकती है?
इस बहस ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रीय नीति पर बयान देने से पहले नेताओं को जनता की भावना और देशहित को जरूर समझना चाहिए।