राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को अक्सर एक कट्टर हिंदू संगठन के रूप में देखा जाता है। यह धारणा कई वर्षों से चली आ रही है कि RSS केवल हिंदू हितों की बात करता है और अन्य समुदायों के लिए इसके दरवाज़े बंद हैं। लेकिन अब संघ के दरवाज़े मुस्लिमों के लिए भी खुल गए हैं—हालांकि कुछ शर्तों के साथ। स्वयं संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह बयान दिया है, जो न सिर्फ मीडिया में बल्कि राजनीतिक हलकों में भी चर्चा का विषय बन गया है।
वाराणसी में मोहन भागवत का बड़ा बयान
वाराणसी के लाजपत नगर में एक कार्यक्रम के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि कोई भी मुसलमान अगर RSS की विचारधारा से सहमत है और कुछ शर्तों को मानने के लिए तैयार है, तो वह संघ का हिस्सा बन सकता है। भागवत के इस बयान ने लंबे समय से चली आ रही उस धारणा को चुनौती दी है कि संघ केवल हिंदुओं के लिए है।
भागवत ने कहा, "संघ की विचारधारा पूजा पद्धति के आधार पर भेदभाव नहीं करती। भारत की संस्कृति एक है, चाहे पूजा पद्धति कोई भी हो। हर धर्म, जाति और संप्रदाय के लोगों का स्वागत है, बशर्ते वे कुछ मूल्यों और सिद्धांतों को स्वीकार करें।"
दो प्रमुख शर्तें
मोहन भागवत ने मुसलमानों के RSS में शामिल होने के लिए दो शर्तें रखीं:
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"भारत माता की जय" का नारा देना — यह राष्ट्रीय भावना और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक माना जाता है।
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भगवा ध्वज का सम्मान करना — यह संघ की विचारधारा और सांस्कृतिक प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करता है।
भागवत ने स्पष्ट किया कि जो लोग इन शर्तों को मानते हैं, उनका संघ में स्वागत है। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि "जो खुद को औरंगजेब का वंशज मानते हैं, वे संघ में स्वीकार नहीं होंगे।"
पूजा पद्धति नहीं, संस्कृति महत्वपूर्ण
संघ प्रमुख ने यह स्पष्ट किया कि संघ की दृष्टि में पूजा पद्धति मायने नहीं रखती, बल्कि संस्कृति और राष्ट्रभक्ति की भावना प्राथमिक है। उन्होंने कहा कि भारत विविधताओं का देश है और यह विविधता उसकी ताकत है, लेकिन राष्ट्र की एकता और सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करना आवश्यक है।
राजनीति में हलचल
मोहन भागवत के इस बयान से राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मच गई है। कुछ दलों ने इसे संघ की छवि सुधारने की कोशिश बताया है, तो कुछ इसे मुस्लिमों को संघ के करीब लाने की रणनीति मानते हैं। कांग्रेस, AIMIM और अन्य पार्टियों ने इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं दीं। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, "RSS की नीयत पर सवाल उठाना लाज़मी है। वे शर्तों के बिना मुसलमानों को कब अपनाएंगे?"
वहीं, बीजेपी नेताओं ने भागवत के बयान को समावेशी राष्ट्रवाद की दिशा में एक कदम बताया है। उनका कहना है कि भारत की आत्मा सभी धर्मों का सम्मान करना है, और संघ उसी राह पर है।
मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया
मुस्लिम समुदाय में इस बयान को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखी गई हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह एक सकारात्मक बदलाव है और इससे संवाद की शुरुआत हो सकती है। वहीं, कुछ इसे एक छद्म प्रयास मानते हैं।
वाराणसी के ही एक मुस्लिम बुद्धिजीवी ने कहा, "अगर यह सचमुच गंभीर पहल है तो इसका स्वागत है, लेकिन यह भी देखना होगा कि ज़मीनी स्तर पर इसका असर क्या होता है।"
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिभाषा
RSS हमेशा से ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करता आया है। इसके अनुसार, भारत एक सांस्कृतिक इकाई है जहां विविधताओं के बावजूद साझा विरासत और मूल्यों को प्राथमिकता दी जाती है। इस विचारधारा में धर्म व्यक्तिगत हो सकता है लेकिन राष्ट्र और संस्कृति साझा होनी चाहिए।
निष्कर्ष
मोहन भागवत का बयान भारतीय राजनीति और सामाजिक समरसता के परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। अगर संघ वास्तव में बिना भेदभाव के सभी समुदायों को अपने साथ जोड़ना चाहता है, तो यह भारत में एक समावेशी राष्ट्रवाद की दिशा में एक नई शुरुआत हो सकती है।
हालांकि यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि इससे RSS की छवि पूरी तरह बदल जाएगी, लेकिन यह ज़रूर कहा जा सकता है कि संवाद की शुरुआत हो चुकी है। आगे का रास्ता संघ की कार्यशैली, मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा।