बच्चे की आंखों पर काजल या सुरमा का उपयोग करना एक पारंपरिक भारतीय संस्कृति है जिससे बुरी नजर नहीं लगती है यह माना जाता है। बहुत सारे भारतीय माता-पिता अपने बच्चों की आँखों को बड़ा और सुंदर दिखाने के लिए काजल का उपयोग करते हैं। काजल को आमतौर पर बच्चे की आंखों की निचली जलरेखा और कानों के पीछे लगाया जाता है।सूरमा एक प्राचीन आँखों का कॉस्मेटिक है जो अनिवार्य रूप से कालिख (काली राख जो कि तेल या घी का जला हुआ अवशेष है) इकट्ठा करके बनाया जाता है। जबकि बहुत सारी पारंपरिक मान्यताएं यह बताती हैं कि काजल लगाना शिशु की आंखों की रोशनी के लिए अच्छा है, लेकिन इस दावे का समर्थन करने वाला कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है। लोग इसे अपने छोटे बच्चो की आंखों को बड़ा और चमकीला दिखाने के लिए लगाते हैं। वास्तव में, बहुत से माता-पिता यह भी मानते हैं कि काजल का उपयोग शिशु को सूरज की कठोर चकाचौंध किरणों से बचा सकता है |
तो काजल छोटे बच्चे को लगाना चाहिए या नहीं ? इसका जवाब ना होगा क्योकि डॉक्टर असहमत होते है | काजल में लीड होता है जो ना केवल आंखों में खुजली और जलन पैदा कर सकता है बल्कि संक्रमण (infection) भी पैदा कर सकता है। वास्तव में अधिकांश स्टोर से खरीदे गए काजल लीड से लदे होते हैं "एक धातु जिससे आपके बच्चो के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए" |
यदि आपके हाथ ठीक से नहीं धोए जाते हैं तो यह बच्चो की आंखों में संक्रमण पहुंचा सकता है। यदि आप अभी भी अपने बच्चे को काजल (सुरमा) लगाना चाहते हो तो आप इसे कानों के पीछे या माथे की हेयरलाइन पर लगा सकते हो पर आँखों का रिस्क सोच समज कर ले |