मुंबई, 07 अप्रैल, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की सदस्यता वाले संगठन AUKUS में जल्द ही जापान की एंट्री हो सकती है। चीन का मुकाबला करने के लिए तीनों देश जल्द ही बातचीत शुरू करेंगे, जिससे जापान के सदस्य बनने का रास्ता खुल सके। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के हवाले से इसकी जानकारी दी। रिपोर्ट के मुताबिक, जापान को संगठन के पिलर 2 का हिस्सा बनाया जाएगा। संधि के तहत, सदस्य देश साथ मिलकर, क्वांटम कम्प्यूटिंग, हाइपरसोनिक, AI और साइबर तकनीकों पर काम करेंगे। जापान AUKUS के पहले पिलर का हिस्सा नहीं होगा, जिसका फोकस इस वक्त ऑस्ट्रेलिया को न्यूक्लियर पावर वाली सबमरीन देना है।
तो वहीं, अमेरिका के उप विदेश मंत्री कर्ट कैम्बेल ने कहा, AUKUS का पनडुब्बी प्रोजेक्ट ताइवान के खिलाफ चीन के किसी भी कदम को रोकने में मददगार रहेगा। हम अगले हफ्ते संगठन से जुड़ी अहम घोषणा कर सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार को सदस्य देशों के रक्षा मंत्री जापान को संगठन में शामिल होने से जुड़ी घोषणा कर सकते हैं। इसके अलावा, जापान में मौजूद अमेरिका के राजदूत राह्म इमैनुअल ने भी कुछ दिन पहले कहा था कि जापान पिलर 2 का पहला पार्टनर बनने जा रहा है। अब उनके बयान को जापान के AUKUS में शामिल होने से जोड़कर देखा जा रहा है।
आपको बता दें, सितंबर 2021 में बना AUKUS ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच नया रक्षा समूह है, जो इंडो-पैसेफिक क्षेत्र पर केंद्रित है। इस गठबंधन (AUKUS) से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को कंट्रोल किया जा सकेगा। इस संगठन की वर्किंग को 2 पिलर में बांटा गया था। पहले पिलर का मकसद परमाणु पनडुब्बी की टेक्नोलॉजी साझा करना है। वहीं दूसरे पिलर का मकसद हाइपरसोनिक और AI जैसी एडवांस्ड तकनीक पर मिलकर काम करना। AUKUS की डील के मुताबिक, अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को 3 US वर्जीनिया क्लास न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन देगा। वहीं, जरूरत पड़ने पर उसे 2 और सबमरीन भी सप्लाई की जाएंगी। वहीं चीन ने हमेशा से ही AUKUS को वैश्विक शांति के लिए खतरनाक बताया है। बता दें कि 1950 के बाद ये पहला मौका था जब अमेरिका अपनी न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी को किसी और देश के साथ साझा करने के लिए तैयार हुआ था।