एक तरफ जहां कई बड़ी कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ छात्रों को देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में नौकरी पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। सवाल यह है कि अगर बड़े संगठनों का यह हाल है तो छोटे संगठनों का क्या हाल होगा। कई बड़े संस्थान छात्रों को उनकी पसंद के मुताबिक नौकरी नहीं दे पा रहे हैं। कई आईआईएम में अभी प्लेसमेंट चल रहा है और कुछ में जल्द ही शुरू होने वाला है।
आईआईएम जैसे संस्थानों में भी छात्रों को नौकरी पाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। छात्रों को या तो मनचाही कंपनी नहीं मिल रही है या फिर मनचाहा वेतन पैकेज नहीं मिल रहा है।टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आईआईएम के लिए प्लेसमेंट सीजन अब तक का सबसे कठिन सीजन साबित हो रहा है। इसके लिए वैश्विक आर्थिक मंदी और कोविड के बाद नौकरी में उछाल को जिम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट में अधिकारियों और छात्रों के हवाले से कहा गया है कि अहमदाबाद, बेंगलुरु, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर और कोझिकोड जैसे शीर्ष आईआईएम के लिए यह प्लेसमेंट सीजन अब तक का सबसे कठिन साबित हो रहा है।
संस्थान के अधिकारियों ने क्या कहा?
आईआईएम कोझिकोड के निदेशक देबाशीष चटर्जी ने कहा कि मंदी का असर सभी पर पड़ेगा। उनके मुताबिक चुनौतीपूर्ण समय में कंपनियां स्थापित संस्थानों पर भरोसा करती हैं। चटर्जी ने कहा कि हालांकि उन्हें हर किसी को नौकरी देने की चिंता नहीं है, लेकिन कुछ लोगों को वह नौकरियां नहीं मिल रही हैं जो वे चाहते हैं।वहीं, आईआईएम अहमदाबाद के प्लेसमेंट चेयरपर्सन अंकुर सिन्हा ने भी माना है कि इस साल छात्रों के लिए नौकरी की तलाश चुनौतीपूर्ण होगी।
उनका अनुमान है कि बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी की पेशकश में 10-15 फीसदी की कमी आएगी. उन्होंने भर्तीकर्ताओं के साथ दीर्घकालिक संबंध बनाए रखने वाले शैक्षणिक संस्थानों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कई कंपनियों के साथ गठजोड़ करके अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने की अपनी क्षमता पर भी भरोसा जताया।